Friday, July 4, 2008



ना जाने क्यां किया कै निगाहे उछालके,
झालिम वो ले गया है कलेजा निकालके।

उसकी निगाहे-शौकने उलझाके रख दिया,
सौ सौ जवाब देती है इक ही सवालके।

तन्हाईओके वक्तमे मै काम आउंगा,
बिस्तरके पास रख मेरे किस्से संभालके।

मैने कहा जो सच तो वो भी बेअसर रहा,
वो झूठ कह रहा था हकिकत मे ढालके।

देख्रे दवाई कडवी सी क्या काम देती है,
मै मेरे गमको पी गया अबके उबालके।

'पागल' कुरेदता है वो झख्मे हयातको,
वो रोझ पूछता है खबर हालचालके ।
-अल्पेश 'पागल'

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