Wednesday, June 11, 2008

लफ्झ बनकर पिघल गया हुं मै,
कितने किस्सोमे धल गया हुं मै.

मैने सबकुछ बदलते देखा है,
वो कहे कि बदल गया हुं मै.

मेरे अन्दर नही हुं मै फिर भी,
आईनोको भी छल गया हुं मै.

वो वहा झुल्फ झटकती होगी,
ओ' यहापे मचल गया हुं मै.

चांद तेरे बगैर चांद नही,
चांदनीमे भी जल गया हुं मै.

दोस्त तुझसे कहुं संभाल जरा,
कि वहा पर फिसल गया हुं मै.

अब अन्धेरो का मै ही स्वामी हुं,
एक सूरज निगल गया हुं मै.
-अल्पेश 'पागल'

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